नीचे दिये गये वाक्यों या क्रिया के उदाहरण (Kriya ke udahran) को पढ़िए और समझिए –
– कुत्ते आपस में लड़ रहे हैं।
– पेड़ से पत्ता गिरा।
– सविता दौड़ेगी।
वाक्यों में क्रमश: ‘लड़ रहे हैं’, ‘गिरा’ और ‘दौड़ेगी’ शब्दों से काम होने का पता चल रहा है। अतः ये तीनों शब्द क्रिया-बोधक हैं।
Kriya Kise Kahate Hain क्रिया किसे कहते हैं
क्रिया की परिभाषा (Kriya Ki Paribhasha) = जिस शब्द से किसी काम का करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे-हम खाना खाते हैं। राम सीता को देखता है। इन वाक्यों में ‘खाते हैं’ और ‘देखता है’ शब्दों से खाने और देखने का काम ज्ञात होता है। अतः ये क्रिया शब्द हैं।
क्रिया के भेद (Kriya Ke Bhed) = क्रिया के प्रकार (Kriya Ke Prakar) क्रिया दो प्रकार की होती है =
(1) अकर्मक क्रिया
(2) सकर्मक क्रिया
(1) अकर्मक क्रिया = जिस क्रिया के कर्त्ता के व्यापार का फल कर्त्ता तक ही सीमित हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-रीता सोती है। चिड़िया उड़ती है। इन वाक्यों में ‘सोना’ और ‘उड़ना’ क्रियाओं का फल उनके कर्त्ता ‘रीता’ और ‘चिड़िया’ पर ही पड़ता है। अतः ये अकर्मक क्रियाएँ हैं।
(2) सकर्मक क्रिया = जिस क्रिया के कर्त्ता के व्यापार का फल कर्त्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। यहाँ पढ़ने का फल पुस्तक पर पड़ रहा है। अतः यह सकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के दो भेद हैं =
(2.1) एककर्मक क्रिया = जिस क्रिया का एक कर्म होता है, उसे एककर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-प्रभु गीत गाता है। इस वाक्य में ‘गीत’ कर्म का प्रयोग हुआ है।
(2.2) द्विकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे-माँ ने बच्चे को दूध पिलाया। इस वाक्य में प्रत्येक क्रिया के दो कर्म हैं। क्रिया के समीप वाला मुख्य कर्म है और कर्त्ता के समीप वाला गौण कर्म है।
अपूर्ण क्रिया = जो क्रिया अपना अर्थ स्वयं प्रकट नहीं कर सकती है तथा अर्थ प्रकट करने के लिए दूसरा शब्द लेना पड़ता है, उसे अपूर्ण क्रिया कहते हैं। जैसे- तुम उसे बनाते हो ।
इस वाक्य रचना से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या बनाते हो। अत: यह अपूर्ण क्रिया है। इस वाक्य को पूर्ण बनाने के लिए लिखा जाएगा कि तुम उसे ‘मूर्ख’ बनाते हो। ‘मूर्ख’ शब्द जोड़ने से वाक्य में पूर्णता आ गयी। ऐसा शब्द, जिसका प्रयोग क्रिया की पूर्णता के लिए किया जाता है, उसे पूरक कहते हैं।
संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद संरचना की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित भेद हैं – (1) संयुक्त क्रिया (2) प्रेरणार्थक क्रिया (3) नामधातु क्रिया (4) कृदन्त क्रिया
(1) संयुक्त क्रिया = दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रिया संयुक्त क्रिया कहलाती है। जैसे-मोहित पढ़ चुका है। इस वाक्य में मुख्य क्रिया ‘पढ़ना’ है। ‘चुकना’ क्रिया उसकी समाप्ति का संकेत कर रही है। अतः ‘पढ़ना’ और ‘चुकना’ संयुक्त क्रिया है।
(2) प्रेरणार्थक क्रिया = जहाँ कर्त्ता स्वयं कार्य न करके अपनी प्रेरणा द्वारा अन्य किसी से करवाता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-मनु राम से पुस्तक पढ़वाती है। इस वाक्य में ‘मनु’ कर्त्ता स्वयं कार्य न करके दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा देता है।
(3) नामधातु क्रिया = मूल धातुओं से भिन्न संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से बनने वाली धातुओं को नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे-संज्ञा से हाथ- हथियाना। लाज-लजियाना । सर्वनाम से अपना-अपनाना। विशेषण से-गर्म- गर्माना
(4) कृदन्त क्रिया = जो क्रिया कृत् प्रत्यय से जोड़कर बनायी जाती है, उसे कृदन्त क्रिया कहते हैं। जैसे-पढ़ता, पढ़ा, पढ़कर।
क्रिया के अन्य भेद
(1) पूर्वकालिक क्रिया (2) आज्ञार्थक क्रिया
(1) पूर्वकालिक क्रिया = जब क्रिया के समाप्त होने के बाद फिर एक दूसरी क्रिया का होना पाया जाए तथा जिसका काल दूसरी क्रिया से प्रकट हो, उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। जैसे-वह खाना खाकर सोएगा। यहाँ ‘खाने’ के बाद ‘सोने’ का कार्य होता है। अतः यहाँ ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया है।
(2) आज्ञार्थक क्रिया = जिस क्रिया का प्रयोग आज्ञा, अनुमति और प्रार्थना आदि के बोध के लिए किया जाता है, उसे आज्ञार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे- तुम इधर आओ।
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