Sunday, December 22, 2024
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Avyay Kise Kahate Hain अव्यय किसे कहते हैं – परिभाषा, भेद, प्रकार, उदाहरण

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Avyay in Hindi अव्यय परिभाषा, भेद, प्रकार, उदाहरण

Avyay

अव्यय की परिभाषा (Avyay Ki Paribhasha) = अव्यय को अविकारी भी कहते हैं। ‘अव्यय’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘जो व्यय न हो।’ अविकारी’ का अर्थ है – ‘जिसमें विकार या परिवर्तन न आए। अतः ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल पुरुष आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं आता, जो सदा अपने मूल रूप में बने रहते हैं, उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं।’

उदाहरणार्थ – धीरे, अब, वाह! भी आदि अव्ययों के प्रयोग के उदाहरण –

वाह! अब सुनीता भी धीरे चलने लगी है।
वाह! अब लड़कियाँ भी धीरे चलने लगी हैं।

अव्यय के भेद (Avyay Ke Bhed) = पाँच प्रकार के अव्यय पाए जाते हैं –

  1. क्रिया विशेषण
  2. सम्बन्ध बोधक
  3. समुच्चय बोधक
  4. विस्मयबोधक
  5. निपात
  1. क्रिया विशेषण = क्रिया विशेषता बताने वाले अव्यय शब्द ‘क्रिया-विशेषण’ कहलाते हैं, जैसे – मोहिनी मधुर गाती है। जैसे – मोहन बिलकुल थक गया है।

क्रिया विशेषण के चार भेद होते हैं –

1.1 कालवाचक
1.2 स्थान वाचक
1.3 परिणाम वाचक
1.4 रीति वाचक

1.1 कालवाचक = क्रिया होने के समय की सूचना देने वाले क्रिया विशेषण ‘कालवाचक’ कहलाते हैं, जैसे –
गीता अभी आई है।
तुम अब जा सकते हो।
गौरव परसों गाएगा।

1.2 स्थानवाचक क्रिया विशेषण = क्रिया होने के स्थान या दिशा का बोध कराने वाले क्रिया विशेषण स्थानवाचक कहलाते हैं, जैसे –
सीता ऊपर बैठी है।
मोहन अंदर गया था।

1.3 परिमाणवाचक क्रिया विशेषण = जिन विशेषणों से क्रिया की मात्रा या उसके परिणाम का बोध होता है, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं, जैसे –
वह बिलकुल थक गया है।
उतना खाओ जितना पचा सको।

अन्य प्रचलित क्रिया विशेषण – लगभग, सर्वथा, अति, अत्यंत, कई, एक, कम, अधिक, कितना, तनिक, बस, इतना, पर्याप्त, खूब, निपट, थोड़ा- सा आदि।

1.4 रीतिवाचक क्रिया विशेषण = जिन अविकारी शब्दों से क्रिया के होने की रीति या विधि का पता चले, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे –
मैं आपकी बात ध्यानपूर्वक सुन रहा हूँ।
मैंने उसे भली-भाँति समझा दिया है।
अन्य उदाहरण – कैसे, ऐसे, वैसे, जैसे, सुखपूर्वक, ज्यों, त्यों, उचित, अनुचित, धीरे-धीरे, सहसा, ध्यानपूर्वक, सच, तेज, झूठ, यथार्थ, वस्तुतः अवश्य, न, नहीं, मत, अतएव, वृथा, इत्यादि।

  1. संबंध बोधक (Post-Position) =

परिभाषा = वे अव्यय, जो संज्ञा सर्वनाम के साथ जुड़कर उनका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों से बताते हैं, सम्बन्धबोधक कहलाते हैं, जैसे –
खुशी के मारे वह पागल हो गया।
बालक चाँद की ओर देख रहा था।

सम्बन्ध बोधक के प्रकार

क्रिया विशेषणात्मक सम्बन्ध बोधक = कुछ अव्यय शब्द क्रिया-विशेषण और सम्बन्ध बोधक दोनों का कार्य सम्पन्न करते हैं। उन्हें क्रिया विशेषणात्मक सम्बन्ध बोधक अव्यय कहते हैं,
उदाहरणतया-
सोहन मोहन से धीरे चलता है।
मोहन उसके पीछे लगा है।
कमरे के अंदर बैठो।

क्रिया-विशेषण और सम्बन्ध बोधक में अंतर = यदि अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताने के साथ अन्य किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ सम्बन्धित हो तो ‘सम्बन्धवाचक’ कहलाता है, अन्यथा क्रियाविशेषण।

उदाहरणतया
मोहिनी लता से मधुर गाती है। (सम्बन्ध बोधक)
मोहिनी मधुर गाती है। (क्रिया विशेषण)
सुरभि ऊपर बैठी है। (क्रिया विशेषण)

  1. समुच्चय बोधक (Conjunction)
    परिभाषा = दो शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों को परस्पर मिलाने वाले अव्यय शब्द समुच्चयबोधक कहलाते हैं। इन्हें योजक भी कहते हैं।
    जैसे –
    माता और पिता (शब्द समुच्चय)
    केले तथा संतरे (शब्द समुच्चय)
    रवि एवं सोम (शब्द समुच्चय)

3.1 समानाधिकरण समुच्चय बोधक = जो अव्यय समान घटकों (शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों) को परस्पर मिलाते हैं, उन्हें समानाधिकरण अव्यय कहते हैं। जैसे – और या किन्तु आदि।

वाक्यों में प्रयुक्त समानाधिकरण समुच्चय बोधकों के कुछ उदाहरण – हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व है। (शब्द-योजक) सुबह हुई और पक्षी चहके। (वाक्य-योजक)

समानाधिकरण समुच्चय बोधक चार प्रकार होते हैं।
संयोजक
विकल्प सूचक या विभाजक
विरोध सूचक
परिणाम सूचक

3.2 व्याधिकरण समुच्चयबोधक = एक या अधिक आश्रित उपवाक्यों को प्रधान वाक्यों से जोड़ने वाले अव्यय व्याधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं, जैसे – यदि मैं दौड़कर जाता तो उसे बचा लेता। यहाँ ‘मैं दौड़कर जाता’ आश्रित उपवाक्य ‘उसे बचा लेता’ प्रधान वाक्य से जुड़ा है। इन्हें जोड़ने वाले योजक हैं -‘यदि’ और ‘तो’। अतः ये व्याधिकरण समुच्यबोधक है।

व्यधिकरण समुच्चय बोधक के चार प्रकार होते हैं।
कारण बोधक
संकेत बोधक
उद्देश्य बोधक
स्वरूपबोधक अव्यय

कारण बोधक (क्योंकि, चूँकि, इसलिए कि, ताकि)
इन अव्यय शब्दों से प्रधान वाक्य और आश्रित उपवाक्यों में कार्य-धारण सम्बन्ध ज्ञात होता है, जैसे –
मैं कल नहीं आ सका, क्योंकि बीमार था।
आपको घर जाना चाहिए, ताकि आराम कर सकें।

संकेत बोधक
(यदि, तो, यद्यपि, तथापि, यद्यपि, परन्तु) – ये अव्यय दो उपवाक्यों को संकेत से जोड़ते हैं, जैसे –
यद्यपि वर्षा हुई, परन्तु गर्मी शांत नहीं हुई।
यद्यपि मैंने कोशिश की, तथापि ढक्कन खुला नहीं।

स्वरूपबोधक
(अर्थात्, यानि, मानो) ये अव्यय पहले के उपवाक्य या वाक्यांश के अर्थ को अधिक स्पष्ट करने वाले होते हैं, जैसे –
तुम्हारे हाथ फूल जैसे हैं अर्थात् कोमल हैं।
यह अहिंसावादी यानि गाँधीजी का पुजारी है।

उद्देश्य बोधक
(ताकि, जिससे, इसलिए, कि) ये अव्यय आश्रित उपवाक्य से पूर्व आकर मुख्य उपवाक्य का उद्देश्य स्पष्ट करते हैं, जैसे –
उमा दिन-रात पढ़ती है, ताकि प्रथम श्रेणी प्राप्त कर सके।
यात्री भागा जिससे कि गाड़ी पकड़ सके।

4. विस्मयादिबोधक
परिभाषा – हर्ष, शोक, आश्चर्य, प्रशंसा, घृणा आदि भावों को प्रकट करने वाले अविकारी शब्द विस्मयादिबोधक कहलाते हैं, जैसे –
‘अहा! कितना सुंदर दृश्य है!’ ‘ऐ!’ यह कैसे हो सकता है। इनमें ‘अहा’ और ‘ए’ विस्मयबोधक शब्द है। विस्मयादिबोधक शब्दों के निम्नलिखित भेद हैं।

  1. हर्ष बोधक – वाह-वाह ! धन्य-धन्य ! आहा! शाबाश! बहुत अच्छा! ओहो ! क्या खूब !
  2. शोक बोधक – हाय! आह ! हा हा! त्राहि-त्राहि ! उफ! ऊह! हे राम ! ओह! हा!
  3. आश्चर्य बोधक – अहो !, ओह!, ओहो !, हैं! क्या !, अरे!, हें !
  4. अनुमोदन बोधक – अच्छा!, हाँ-हाँ!, वाह !, शाबाश!, ठीक!, बहुत अच्छा!
  5. तिरस्कारबोधक – छि: !, हट्!, अरे!, धिक् !, ओफ !, थू! थू!, धिक्कार है।
  6. स्वीकृति बोधक – अच्छा!, ठीक!, बहुत अच्छा !, हाँ!, जी हाँ!
  7. सम्बोधन बोधक – अरे !, रे!, अजी!, अहो!
  8. आशीर्वाद बोधक – जीते रहो!, दीर्घायु हो!, खुश रहो!
  9. भयबोधक – बाप रे!, हाय!, हा!, ओह!
  10. क्रोध बोधक – अबे !, धत् !,चुप!, परे हट!, ठहर !, हट!
  11. चेतावनी बोधक – बचो!, होशियार!, अरे हटो !

कभी-कभी संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम, क्रिया और वाक्यांश तक विस्मयादिबोधक का कार्य करते हैं –
संज्ञा = राम-राम ! बाप रे!
विशेषण = सुंदर, बहुत अच्छे! सर्वनाम कौन! क्या! आप।
क्रिया = चुप! आ गए!
वाक्यांश = क्या कहा! मारे गए!

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