आज हम बात करेंगे अपनी जिंदगी में कभी ना हारने वाले गामा पहलवान (Gama Pehalwan) की जो ब्रिटिश भारत के समय में ताकतवर आदमियों में से एक थे।
Gama Pehalwan Biography in Hindi – गामा पहलवान का जीवन परिचय
इनका असली नाम गुलाम मोहम्मद बक्श बट्ट (Ghulam Muhammad Baksh Butt) था। गामा के बचपन का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था और Rustam-e-Hind, Rustam-e-Zamana, The Great Gama के नाम से भी जाने जाते थे। 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव, पंजाब में गामा पहलवान का जन्म एक कश्मीरी परिवार में हुआ। इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरु कर दी थी। Gama Pehalwan ने पत्थर के डम्बल से हर रोज व्यायाम करके बहुत मेहनत और लगन से अपनी बॉडी बनाई। बात उस समय की है जब दुनिया में कुश्ती के मामले में अमेरिका के पहलवान जैविस्को (Jevisco) पहलवानी के खेल का बहुत बड़ा और जाना-माना नाम था। गामा ने इसे परस्त कर दिया। पूरी दुनिया में गामा को कोई नहीं हरा सका और इसी कारण पहलवान गमा को वर्ल्ड चैंपियन के खिताब से नवाजा गया।
गामा पहलवान का प्रारंभिक जीवन – इनके परिवार में स्वयं ही विश्व प्रशिद्ध पहलवान हुए और इसी कारण इनकी दिलचस्पी भी पहलवानी में पड़ गई। गामा की दो पत्नियां थी, एक पाकिस्तान में और दूसरी गुजरात के बड़ौदा शहर में। जब गामा 6 वर्ष के थे तो उनके पिता मौहम्मद अज़ीज़ बख्श का निधन हो गया था। पिता की मृत्यु के बाद गामा के नानाजी नून पहलवान (Noon Pehalwan) ने गामा को पाला-पोसा। बाद में नाना नून पहलवान के निधन के बाद गामा के मामाजी इड़ा पहलवान (Eida Pehalwan) ने गामा को पाल-पोस कर बड़ा किया। इड़ा पहलवान की देखरेख में ही गामा पहलवान ने पहलवानी की शिक्षा प्रारंभिक की। इनकी शिक्षा, खानपान और पहलवानी की शिक्षा की बात की जाए तो गामा का सब रख-रखाव उनके मामा इड़ा पहलवान ने देखा। वह एक प्रतिध्वंधि से नहीं बल्कि 40 के साथ एक साथ लड़ते थे और उन्हें पराजित भी करते थे। गामा पहलवान रोजाना 30 से 40 मिनट में 100 किल्लो की हस्ली (गोल पत्थर) पहनकर 5000 उठक बैठक लगाते थे और उसी हस्ली को पहनकर 3000 दंड लगाते थे। पहलवानी के क्षेत्र में और दम-ख़म दिखाने के लिए गामा हर रोज डेढ़ पोंड बादाम पेस्ट के साथ मिश्रित दस लीटर दूध लेते थे। मौसमी फ्रूट के तीन टोकरे, आधा लीटर घी, देसी मटन, 6 देसी चिकन, 6 पोंड मखन, फ्लो का रस, एवं अन्य पोस्टिक खाद्य पदार्थ अपनी रोज की खुराक की रूप में लिया करते थे।
गामा ने अपनी पहलवानी की शुरुआत महज 10 साल की उम्र में पहली कुश्ती लड़कर करी। पहली बार गामा पहलवान चर्चा में तब आए जब एक दंगल को जोधपुर के राजा ने 1890 में करवाया। छोटे उस्ताद गामा ने भी उस दंगल में हाजरी दे डाली। जोधपुर के राजा ने जब पहलवान गामा की कसरत देखी तो दंग रह गए। गामा को एक पहलवान से लड़वाया भी गया। 10 वर्ष के गामा 450 पहलवानो में से पहले 15 पहलवानो में आए थे। राजा ने गामा को विजेता घोषित किया। कहते है कि गामा ने फिर कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और नई बुलंदिया हांसिल करते चले गए। 19 साल के होते होते गामा ने हिंदुस्तान के एक से एक नामचीन पहलवान को हरा दिया। पर एक नाम था जिसे कुश्ती के मैदान में बहुत इज़्ज़त और सम्मान के साथ लिया जाता था और वह नाम था गुंजरवाला के रहीम बक्श सुल्तानी का। यह नाम अब भी गामा पहलवान के लिए चुनौती था क्युकी अभी तक इन दोनों पहलवानो का आपस में मुकाबला नहीं हुआ था। इसी बीच लाहौर में रहीम बक्श सुल्तानी और गामा पहलवान के बीच पहलवानी का मुकाबला रख दिया गया। कहते है कि उस दिन सारा का सारा लाहौर इस पहलवानी के मुकाबले को देखने के लिए टूट पड़ा था। तकरीबन 7 फुट ऊँचे रहीम बक्श के सामने 5 फुट 7 इंच के गामा बिलकुल बच्चे से लग रहे थे। देखने से ऐसा लग रहा था जैसे रहीम बक्श सुल्तानी आराम से गामा को हरा देंगे। अंत में नतीजा कुछ नहीं निकला, दोनों बराबरी पर ही रहे। इस मुकाबले का असर यह हुआ कि गामा हिंदुस्तान भर में मशहूर हो गए थे।
वर्ष 1910 में अपने भाई के साथ गामा लंदन के लिए रवाना हो गए थे। लंदन में उन दिनों champions of champions नाम की प्रतियोगता हो रही थी। इसके नियमो के हिसाब से गामा का कद कम था। इसलिए गामा को द्वंद्व में शामिल होने से रोक दिया गया। गामा इस बात पर गुस्सा हुए और यह एलान कर दिया कि वह दुनिया के किसी भी पहलवान को हरा सकते है। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह उस पहलवान को इनाम देकर हिंदुस्तान वापिस लौट जाएंगे। उन दिनों विश्व कुश्ती में पोलैंड के सतानीसलोस, फ्रांस के फ्रैंक गांच और अमेरिका के रोलर बहुत मशहूर थे। रोलर ने गामा की चुनौती स्वीकार कर ली। पहले राउंड में गामा ने उन्हें डेढ़ मिनट में चित कर दिया और दूसरे राउंड में 10 मिनट के अंदर फिर से पटकनी दे डाली। फिर अगले दिन गामा ने दुनियाभर से आए 12 पहलवानो को मिनटों में हराकर तहलका मचा दिया। और इस तरह आयोजकों को हराकर गामा ने दंगल में प्रवेश किया।
लंदन से लौटकर Gama Pehalwan का रहीम बक्श सुल्तानिवाला से आखिरी बार मुकाबला अल्ल्हाबाद में हुआ। बहुत देर तक चले इस दंगल में गामा पहलवान की आखिरकार जीत हुई और साथ में रुस्तम-ए-हिन्द (Rustam-E-Hind) का खिताब भी जीत लिया। जब एक इंटरव्यू के दौरान गामा पहलवान से यह पूछा गया कि सबसे ज्यादा टक्कर उनको किसने दी तो उन्होंने कहा की रहीम बक्श सुल्तानिवाला ने। रहीम बक्श सुल्तानिवाला पर विजय प्राप्त करने के बाद संन 1916 में गामा पहलवान ने पहलवान पंडित बिद्दु (जो उस समय के भारत के जाने माने पहलवानो में से एक थे) का सामना किया और उनपर भी विजय प्राप्त की। जब वेल्स के राजकुमार 1922 में भारत के दौरे पर आए और उन्होंने गामा पहलवान को चांदी की एक गदा भेंट की। पूरे भारत में 1927 तक गामा पहलवान को जब कोई चुनौती देने वाला नहीं बचा तो फिर से गामा और ज़ैविस्को के मकाबले करवाने पर सहमति हुई और इन दोनों पहलवानो की मुलाकात वर्ष 1928 में पटियाला में हुई। अखाड़े में ज़ैविस्को ने अपनी बड़ी-बड़ी मांसपेशियां दिखाई और दूसरी तरफ गामा पहलवान उनके सामने दुबले पतले लग रहे थे। सिर्फ 1 मिनट के अंदर ही Gama Pehalwan ने ज़ैविस्को को हरा दिया और इसके साथ ही गामा पहलवान को भारतीय-विश्व स्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता का विजयी घोषित कर दिया गया और ज़ैविस्को ने भी उन्हें बाघ कहकर संबोधित किया। 48 वर्षय गामा पहलवान की गिनती भारत के मशहूर पहलवानो में होने लगी।
गामा ने वर्ष 1929 में जेज़ पीटरसन को भी हरा दिआ। निज़ाम ने वर्ष 1940 में गामा को निमंत्रण दिया और गामा पहलवान ने यहाँ आए बाकि सभी पहलवानों को आसानी से हरा दिया। निज़ाम ने फिर गामा को पहलवान बलराम हीरामण सिंह यादव का सामना करने के लिए भेजा जो स्वयं कभी भी नहीं हारा था। गामा और बलराम हीरामण सिंह यादव दोनों ही बहुत ताकतवर पहलवान होने के कारन यह द्वंद बहुत लम्बा चला और कोई फैसला नहीं निकला।
सन 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद गामा पहलवान पाकिस्तान चले गए। सन 1952 में गामा पहलवान ने सन्यास ले लिया और अपने भतीजे भोलू पहलवान को पहलवानी सिखाई। मई 1960 को लाहौर में ही उनकी मृत्यु हो गई।