पढ़े शब्द की परिभाषा (Shabd ki pribhasha), शब्द के भेद (Shabd ke bhed), शब्द के प्रकार (Shabd ke prakar), शब्द के उदाहरण (Shabd ke udahran). नीचे दिये गये वाक्यों को देखिए, पढ़िए और शब्द (Shabd) को समझिए।
- घोड़ा दौड़ रहा है।
- मोहिनी खाना खा रही है
पहले वाक्य में चार शब्द हैं – (1) घोड़ा (2) दौड़ (3) रहा (4) है। दूसरे वाक्य में पाँच शब्द हैं- (1) मोहिनी (2) खाना (3) खा (4) रही (5) है। इन शब्दों में सार्थक वर्णों का समूह है।
Shabd Kise Kahate Hain शब्द किसे कहते हैं
शब्द की परिभाषा (Shabd Ki Paribhasha) = एक या अधिक वर्णों से बनी सार्थक ध्वनि को ‘शब्द’ कहते हैं। जैसे-कमल, गुलाब, बोतल आदि।
शब्दों का वर्गीकरण (Classification Of Word) = शब्दों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है, जैसे-
1. अर्थ के आधार पर शब्द भेद = अर्थ के आधार पर शब्द निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
(1.1) समानार्थी
(1.2) एकार्थी
(1.3) अनेकार्थी
(1.4) विपरीतार्थी
(1.1) समानार्थी – जो शब्द समान अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें समानार्थी या पर्यायवाची शब्द कहते हैं। जैसे-अम्बुज, राजीव, कमल, पंकज, जलज, नीरज आदि।
(1.2) एकार्थी – जो शब्द केवल एक ही अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे-गणतन्त्र, मैदान, लड़ाई आदि।
(1.3) अनेकार्थों – जो शब्द एक से अधिक अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं। जैसे-अंक = चिह्न, भाग्य, गोद, संख्या, दाग, नाटक का एक खण्ड।
(1.4) विपरीतार्थी – जो शब्द विपरीत अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें विपरीतार्थी या विलोम शब्द कहते हैं। जैसे – प्रकाश-अन्धकार, रात-दिन, चतुर- मूर्ख आदि।
2. व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद = व्युत्पत्ति के आधार पर शब्दों के तीन भेद किये जा सकते हैं –
(2.1) रूढ़
(2.2) यौगिक
(2.3) योगरूढ़
(2.1) रूढ़ – जिन शब्दों के यदि खण्ड किए जाएँ और खण्डों का कोई अर्थ न हो, वे शब्द रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-बालक। इसमें बा+ल+क तीन खण्ड करने पर कोई भी खण्ड सार्थक नहीं है। अतः ये रूढ़ शब्द हैं।
(2.2) यौगिक – ऐसे शब्द जो दूसरों के मेल से बनते हैं और जिनके खण्ड सार्थक होते हैं, वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-विद्यार्थी (विद्या+अर्थी) इसके दोनों खण्ड सार्थक हैं, अतः यह यौगिक शब्द है।
(2.3) योगरूढ़ – योगरूढ़ वे शब्द होते हैं जिनका निर्माण तो दो शब्दों के योग से होता है किन्तु वे किसी एक शब्द के लिए रूढ़ हो जाते हैं। जैसे – लम्बोदर का सामान्य अर्थ है। लम्ब+उदर अर्थात लम्बे पेट वाला किन्तु यह शब्द केवल गणेश जी के लिए ही प्रयुक्त होने लगा है। अतः यह योगरूढ़ शब्द है।
3. उत्पत्ति के आधार पर शब्द भेद = उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद किये जा सकते हैं –
(3.1) तत्सम्
(3.2) तद्भव
(3.3) देशज
(3.4) विदेशज्
(3.1) तत्सम् – वे शब्द जो संस्कृत भाषा के हैं और ज्यों के त्यों हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होते हैं, तत्सम् शब्द कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, अनिल, हस्त, दुग्ध, रात्रि आदि।
(3.2) तद्भव – वे शब्द जो मूल रूप में संस्कृत भाषा के ही हैं, पर लम्बे समय से व्यवहार में आने के कारण उनमें परिवर्तन हो गया है, तद्भव शब्द कहलाते हैं। जैसे-आग, हाथ, दूध, रात, गाँव, खेत आदि।
(3.3) देशज – देशज का शाब्दिक अर्थ है-देश में उत्पन्न हुआ। प्रान्तीय भाषाओं और बोलियों से लिये गये अथवा आवश्यकतानुसार गढ़े गये शब्द देशज कहलाते हैं। जैसे-पेट, लोटा, कटोरा, पगड़ी, झुग्गी आदि।
(3.4) विदेशज् – वे शब्द जो विदेशी भाषाओं से आकर हिन्दी भाषा में प्रयुक्त होने लगे हैं, विदेशज् शब्द कहलाते हैं। जैसे –
अरबी = सिफ़ारिश, मालूम, माफ़ी, हक़ीम आदि।
फारसी = आदमी, दूकान, कमर, शरम आदि।
तुर्की = अलमारी, लाश, तमाशा, कुली आदि।
अंग्रेजी = रेल, स्कूल, कमीशन, टिकिट आदि।
महत्त्वपूर्ण तत्सम् शब्दों के तद् भव रूप
तत्सम् | तद्भव |
श्रृंगार | सिंगार |
गृह | घर |
हस्थी | हाथी |
नृत्य | नाच |
गर्दभ | गधा |
वृषभ | बैल |
भ्रात | भाई |
कुम्भकार | कुम्हार |
दधि | दही |
पर्यक | पलंग |
हृदय | हिय |
हस्त | हाथ |
अंध | अंधा |
आम्र | आम |
उष्ट्र | ऊँट |
उच्च | ऊँचा |
वृश्चिक | बिच्छू |
जिह्वा | जीभ |
ज्येष्ठ | जेठ |
वधू | बहू |
छिद्र | छेद |
नक्षत्र | नखत |
श्वेत | सफेद |
मृत्तिका | मिट्टी |
चूर्ण | चूरा |
लवंग | लौंग |
यश | जस |
क्षार | खार |
पाषाण | पाहन |
अंगुष्ठ | अँगूठा |
अंगुलि | उँगली |
बधिर | बहिरा |
कर्ण | कान |
मक्षिका | मक्खी |
ग्रन्थि | गाँठ |
इक्ष | ईख |
मूषक | मूसा |
गौर | गोरा |
अग्नि | आग |
अक्ष | आँख |
रुक्ष | रूखा |
भगिनी | बहिन |
अन्न | अनाज |
स्फूर्ति | फुर्ती |
चर्म | चमड़ा |
दूर्वा | दूव |
चंचु | चौंच |
मित्र | मीत |
वत्स | बच्चा |
मध्यम | मंझला |
तृण | तिनका |
मुक्ता | मोती |
त्वरित | तुरन्त |
शय्या | सेज |
लवण | नोन |
स्वर्णकार | सुनार |
4. विकार या परिवर्तन के आधार पर शब्द-भेद = विकार या परिवर्तन के आधार पर शब्दों के दो भेद होते हैं –
(4.1) विकारी
(4.2) अविकारी
(4.1) विकारी = जिन शब्दों में लिंग (Ling), वचन (Vachan), कारक (Karak) आदि के प्रभाव से परिवर्तन हो जाता है, विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे – ‘लड़का’ शब्द स्त्रीलिंग में लड़की, बहुवचन में लड़के और कारक के अनुसार लड़के ने लड़के को आदि हो जाता है।
विकारी शब्दों के भेद-प्रयोग के अनुसार विकारी शब्दों के चार भेद होते हैं –
(4.1.1) संज्ञा
(4.1.2) सर्वनाम
(4.1.3) क्रिया
(4.1.4) विशेषण
(4.2) अविकारी – जिन शब्दों में लिंग, वचन, कारक के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं होता है, अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, वहाँ, कल, आज, धीरे-धीरे, किन्तु, साथ, आह, वाह आदि।
अविकारी शब्दों के भेद – प्रयोग के अनुसार अविकारी शब्दों के भी चार भेद होते हैं –
(4.2.1) क्रियाविशेषण
(4.2.2) सम्बन्ध वाचक
(4.2.3) समुच्चय बोधक
(4.2.4) विस्मयादि बोधक
शब्द और पद में अन्तर
‘शब्द’ और ‘पद’ में अन्तर यह होता है कि सार्थक वर्णों का समूह ‘शब्द’ कहलाता है और ‘शब्द’ जब व्याकरण के नियमों में बँधकर ‘वाक्य’ में प्रयुक्त होता है तब वह ‘पद’ कहलाता है। जैसे-‘अंशुल ने’ ‘रामायण’ पढ़ी। स्वतन्त्र शब्द थे लेकिन वाक्य में प्रयुक्त हुए ये शब्द, शब्द न रहकर, ‘पद’ बन गये।
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