बेटी को पत्र की सूची हिंदी भाषा में फॉर्मेट के साथ पढ़े। In this article, we provide list of letter to daughter in Hindi language with format for students of class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12.
Letter to Daughter in Hindi बेटी को पत्र हिंदी में
Letter 1 – माता की ओर से पुत्री को पत्र न मिलने पर पत्र। Letter on not receiving letter from mother to daughter in Hindi.
मकान नं. 12, नीरजा कॉलोनी, दिल्ली
5.12.2020
आयुष्मती रीटा,
आशीर्वाद।
कल ही तुम्हारा पत्र मिला और पता चला कि हमारा पत्र न मिलने के कारण तुम कुछ चिंतित-सी हो। बेटी, चिंता की क्या बात है? हाँ थोड़ा सा काम काज में व्यस्त होने के कारण समय नहीं मिल पाया। ऊपर से इतनी उम्र होने के कारण सेहत का तुम्हे पता ही है। हाँ, सुख-दुःख तो शरीर के भोग हैं। फिर भी घर पर सब कुशलपूर्वक हैं। पिछले दिनों तुम्हारे पिताजी को मामूली-सा ज्वर हुआ था; परंतु अब वे बिलकुल ठीक हैं। रीटा पिछले महीने हमने तुम्हें एक पत्र भेजा था। डाक-कर्मचारी की असावधानी से शायद पत्र इधरउधर हो गया होगा, संभव है कि अब तुम्हें मिल भी गया होगा। इस पत्र को मिलते ही अगले दिन हमे यह अवश्य बताना की तुम्हे यह पत्र मिल गया है। अगर तुम्हारा उत्तर नहीं मिला तो हम समझेंगे की पहले की तरह यह पत्र भी इधरउधर हो गया है। तुम किसी बात की चिंता न करना। खाने-पीने का परहेज रखना। बर्फ, लैमन-सोडे आदि की बोतल, बाजारू मिठाई तथा चाट से सर्वथा दूर रहना। आशा है, तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक होगा।
प्रिय पुत्री ! हमने तुम्हारे बिछोह का कष्ट इसलिए सहा कि तुम छात्रावास में रहकर विशेष योग्यता प्राप्त कर सकोगी, जो घर में सुलभ नहीं है। इसलिए तुम अपनी शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना-यही हमारा सस्नेह आग्रह है। तुम्हारे पिताजी की ओर से तुम्हें शुभाशीर्वाद ।
तुम्हारी माँ
पारवती
Letter 2 – ससुराल के सम्बन्ध में अच्छी शिक्षा देते हुए माता की ओर से पुत्री को पत्र। Letter from mother to daughter in Hindi giving good education regarding in-laws.
रजनी अग्निहोत्री,
कनौर
3.11.2020
प्रिय पुत्री अभिलाषा,
प्रसन्न रहो। कल ही तुम्हारा पत्र मिला, समाचार विदित हुआ। हर्ष की जगह पर शोक हुआ। तुम्हारी कहानी को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम पढ़ी-लिखी तो जरूर हो, मगर अभी गुनी नहीं हो। तुम अपने कर्तव्य-पालन से विमुख हो, इसलिए ही तुम्हें कष्टों का सामना करना पड़ रहा है। मैं यह शिक्षाप्रद पत्र आज तुमको इसी उद्देश्य से लिख रही हूँ तुम अपने कर्तव्य को भलीभाँति समझ जाओ। आशा है, इसे पढ़कर तुम्हे अवश्य लाभ उठाओगी और आगे कभी भी शिकायत का अवसर न आने दोगी।
स्त्री का मुख्य धर्म अपने परिवार की सेवा करना है। सेवाधर्म जितना कठिन है, उतना ही वह उत्तम फलदायक भी है। प्राचीनकाल की स्त्रियाँ इसी सेवाधर्म का पालन करके जगत्पूज्य और परमपद की अधिकारिणी हुई हैं। इसलिए कभी भी सेवाधर्म से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए।
इसके अतिरिक्त प्रेम एक ऐसी वस्तु है जो पत्थर को भी पिघलाकर मोम कर देती है। लिखा है कि मीठा बोल बोलने से पशु भी अपने वश में हो जाते हैं और शत्रु भी अपने मित्र हो जाते हैं। इसलिए मीठी बोली बोलकर नम्रता का बरताव करो। परिश्रम करके सबको अपना बनाने की कोशिश करो। स्त्रियों को सहनशील भी होना चाहिए। अगर अपने से बड़ा व्यक्ति अनुचित बात भी कहे तो उसे सुनकर चुपचाप रहना चाहिए। जवाब देकर उसकी बराबरी नहीं करनी चाहिए। इसी में स्त्रियों की भलाई है। बाद में जब कभी भी वक़्त मिले तो बड़ो से प्यार से बात की जा सकती है। अगर तुम्हारी बात उन्हें अच्छी लगी तो वह जरूर तुम्हारी बात पर अमल करेंगे और अपना निर्णय बदलेंगे। इसके बाद आगे भी बड़ो को कभी कुछ निर्णय लेना होगा तो बड़े तुमसे तुम्हारा सुझाव जरूर लेंगे।
बेटी ! अब तुम्हें तो सदा उसी घर से काम है। अब उसी घर से तुम्हारा स्थायी नाता है। इसलिए शांति, संतोष, धैर्य आदि गुणों को धारण करके जीवन को सफल बनाने की कोशिश करो। और यह भी याद रखो कि कभी किसी की बुराई मत करो। घर के आदमी की बुराई करने से स्त्री को लाभ तो दूर रहा, उसको अपयश की भागी ही बनना पड़ता है। दिन-प्रतिदिन क्लेश रहने के कारण महान् कष्टों को भोगना पड़ता है। इसलिए सास, ननद, देवरानी, जेठानी, पति आदि कोई हों, कभी किसी की बुराई न करो, इसी में तुम्हारा कल्याण है और तुम आगे खुश रह पयोगी।
तुम्हारी शुभचिंतिका माता
ममता देवी
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